मैं शून्य की ओर लौट आया

मंज़िल मुझे बाहों में डालने को थी,
ख़्वाब कितने ही पूरे होने को,
मैन ख़ुदगर्ज़ था.. की मुझे चलना था ताउम्र
इसलिए मैं शून्य की ओर लौट आया !!
वो मेरी उड़ती धूल थी ज़मीं होने को,
मेरी सब यादें भी थी क्षीण होने को,
आग़ाज़ हुआ नयी कोपलों का शाख़ों पर,
मैं पर था पुराने पत्तों के इश्क़ में हमेशा
इसलिए मैं शून्य की ओर लौट आया !!
वो जो वीरान सा वन उपवन जंगल था ,
जहाँ सब वफ़ाओं की कुढी कुढी लाशें थी ,
एक नया वादा फूटा था बड़ा मासूम सा,
पर था मैं झूठे वादों के शहर में बिका हुआ ,
इसलिए मैं शून्य की ओर लौट आया !!

बेतुकी चाहतें….

बस यही कुछ दो -चार चाहतें हैं मेरी
बेतुकी सी है सारी ,पर दिल के पास है मेरी !!

तेरी बचकानी सी एक जिद होकर ,तेरा प्यार पाने की
तेरी बाहों में लिपट कर , तुझपे ही मर जाने की !!

यही कुछ बेतुकी सी चाहतें हैं मेरी

तेरी नशीली आँखों का नमकीन पानी बनकर ,
नम पलकों पर तेरे ठहर जाने की !!!
सुर्ख गालों से उतारते हुए,
तेरे भींगे होठों पे मुस्कुराने की

यही कुछ बेतुकी सी चाहतें हैं मेरी

तेरे कंगन सा तेरी कलाई में ठहर तुझे चूम जाऊं,
ओढ़नी सा तेरे माथे पर सज तेरी हया बन जाने की !!

बनकर एक प्रेमगीत , तेरे लबों पर थिरकते हुए ,
सिरहाने तेरे सुकून का तकिया बन जाने की

यही कुछ बेतुकी सी चाहतें हैं मेरी,
दो- चार हैं पर दिल के पास हैं मेरी !!

जब तेरी याद आ जाती है!!

ज्यादा कुछ तो नहीं होता बस मैं टूट जाता हूँ!
और इन सब बातों से तेरी याद आ जाती है !!

जब सावन झूम के बरसता है और जमीं भीग जाती है!
जब हवाएं हल्के से मुझे छूकर तेरा एहसास कराती है !!

ज्यादा कुछ तो नहीं होता बस जज़्बात मर जाते हैं !
और बूँदें में भी तू ही नज़र आ जाती है !!

नम आँखों से हम जब तारें गिनते हैं रातों को
या फिर जब चांदनी मेरे जिस्म पर छा जाती हैं !!

ज्यादा कुछ तो नहीं होता बस सपने टूट जाते हैं !
और फिरसे चाँद सी मुझे तू नजर आती है !!

जब भी किसी महफ़िल में कोई हाथ पकड़ कर ले जाता है मुझे !
और तब सारी शहनाई ख़ामोशी की मूरत बन जाती है !!

महक जाता है जिस्म का जर्रा जर्रा
जब बंद आंखें करू तो तू नजर आती है !!

ज्यादा कुछ तो तो नहीं होता बस आँखें भीग जाती हैं !
सीने का दर्द छुपाती मुस्कान होठों पर छा जाती है !!

ज्यादा कुछ तो नहीं होता जब जब तेरी याद आ जाती है!!

‘शायद’ और ‘काश’

तुम मेरा एक अनकहा ..एक दबा हुआ एहसास हो !!

तुम मेरा एक अनकहा ..एक दबा हुआ एहसास हो !!
तुम मेरा ‘शायद’ , की तुम मेरी ‘काश’ हो !!
वो जो पता नहीं कभी होगा या नहीं !!
या वो जो शायद कभी हुआ था भी, या नहीं !!
इसी कश्मकश की बढ़ती हुई प्यास हो !!
तुम मेरा शायद, तुम मेरी काश हो !!
की मिल जाए तू मुझे कहीं , या कहीं फिर दिखे नहीं ,
बारिश बस बरसती रहे और कभी सूरज छुपे नहीं !!
जमीं को छूने की तमन्ना में मशगूल मेरा आकाश हो
तुम खूबसूरत शायद तुम बेइंतेहा काश हो !!
लकीरों में बस गयी हो ..या मुकद्दर से छूट गई,
तुझे पाने खोने की कसकमकश में जिंदगी रूठ गई !!
होठों से रुक्सत हुई मुस्कान की तुम तलाश हो,
तुम छिपा हुआ शायद, तुम जगजाहिर काश हो !!
खामोशियों में दबी हुई शोर का जज़्बातों की तरह,
लम्हों में छुपे हुए सदियों के इंतज़ार की तरह !!
की तुम रूह में जिन्दा हो ,ना कोई बदलता हुआ लिबास हो,
तुम हक़ीक़त में बसी हुई शायद , तुम ख्वाहिशों में बसा हुआ काश हो !

 

चाहत ..

तू कभी होंठ बन जा गुलाबी, मैं मनचला सिगरेट बन जाता हूँ
तू कत्थई सुराही सी हो जा, मैं मदहोश पनघट बन जाता हूँ ||

बन जाना तू चाँदनी मेरी, मैं तेरा चाँद बन जाता हूँ..
हो जा तू कोई ख्वाब सुहाना, मैं बदलती करवट बन जाता हूँ

तू खुश्बू बन जा गुलाब की, मैं मचलती हुई हवा बन जाता हूँ
बन जा तू हक़ीक़त सुहानी,मैं एक खामोश हसरत बन जाता हूँ ||

तू मेरे कलम की स्याही बन जा, मैं तेरा कोरा पन्ना बन जाता हूँ
हो जा तु बहकती हुई ओढनी सी, मैं सम्भलता हुआ सिलवट बन जाता हूँ ||

हो जा तू मेरी दुआ पाक सी, मैं तेरी नटखट सी मन्नत बन जाता हूँ
तू मेरी हसीन सी दुनिया बन जा, मैं तेरी जन्नत बन जाता हूँ ||

तू मेरी तलब सी बन जा, मैं लहराता हुआ झरना बन जाता हूँ
तू लकीरें मेरी बन जा मेरे तकदीर की, मैं तेरी किस्मत बन जाता हूँ ||

तू कत्थई सुराही सी हो जा, मैं मदहोश पनघट बन जाता हूँ…

एक तेरा ही हो सकता हुँ

एक तेरा ही हो सकता हुँ, मैं अब किसी और का नहीं
तू ही उड़ान का आसमाँ है मेरा,तू ही मेरे धूल सी जमीं।।

तेरी बाहों में लिपटे हैं , मेरे कई अरमान बेतुके
खुदा भी दीवाना हो जाए..मेरी जान! जब तेरी पलकें झुकें।।

बस एक मुस्कान से तूने कई बार झकझोर दिया है मुझे।
तेरी सारी ख़ुशियाँ मैं हो जाऊँ, अपना बना के रखूँ तुझे।।

तेरे चेहरे पर वो तिल है या नज़र ना लगे वो टीका ??
वो जो भी है काले रंग का..बिन उसके मेरा हर रंग फीका ।।

वो जो एक नथ सजती है ना..तेरे चेहरे पर छोटी सी
हर पल चमकती है ,घास पर गिरे ओस के मोती सी।।

वादियाँ भी दीदार को तेरे ,हवाओं से तेरी ज़ुल्फ़ें चेहरे से हटाती हैं
तेरे दीदार पर सबसे पहले मेरा दिल,तेरी मासूम बिंदिया ले जाती है!

सादगी से ही तेरी दीवाना बन गया हुँ ,सज सँवर कर मार ही डालोगी क्या??
अदाओं का तेरी मैं तो कबसे दीवाना हूँ,हया बिखेर के पागल बना दोगी क्या??

सीने से लग ,मेरे धड़कन की सदाएँ अपने सीने तक ले जा
कुछ कहना ना पड़े मुझे,बिन कुछ कहे मेरी हो जा।।

छोड़ ना दुनिया की बातें अब..बातों के लिए ही तो ज़माना है ।
सब अनसुना कर दौड़ के आ जा,मुझे अब तेरी रूह में समाना है!!

तेरे शहर में

कई ख्वाब मर गए हैं , पहुँच कर तेरे शहर में ,
कई रातें बस फ़िक्र में गुज़ारी हैं ,तेरे शहर में  !!

भटकते क़दमों को लेकर चला हूँ ,भूखे पेट के साथ
कई अरमान मर गए हैं , पहुँच कर तेरे शहर में  !!

ये बड़ी बड़ी इमारतें ,ये ऊँचे ऊँचे शौक यहाँ के
मतौल-ए-मौत भी मिलता है क्या तेरे शहर में  ??

काला सा धुंध आने कहाँ देता है सूरज को जमीन पर , 
मिट्टी भी धुल को तरसती है तेरे शहर में  !!

मेरा शहर आने वाला है 

ये अजनबी से लोग अपने तो नहीं हैं मेरे ,
मगर इनका साथ बिलकुल अपनो ही वाला है।
एक पहचानी सी ख़ुशबू आ रही है मिट्टी से,

लगता है अब आगे मेरा शहर आने वाला है!

बहुत कोशिशें की दिल को मनाने की…पर कमबख़्त नहीं माना ,
लगता है अब ये बाबूजी को डाँट सुनकर ही माननेवाला है ।।
हर उस निगाह से छुप रहा हु जो मुझपर आ रही..पर कहाँ छिपा जा रहा है।
अब तो सीधा ये माँ के आँचल में ही छिपने वाला है।।

एक छोटी हँसी मेरे मुरझाये चेहरे पर मंद मंद आ गई है..
अब तो पक्का लगता है मेरा शहर आने वाला है।।

कई ठहाके दिल में अँटके पड़े थे बरसों से जो।
हर ठहाका अब दोस्तों की झुंड में लहराने वाला है।
और वो जो आँसु जम गए थे मेरी आँखों के कोनो में..
अब वो महबूब की बाहों में ही बहने वाला है!!
पुरानी यादों से अब दिल मेरे दिमाग़ को झकझोरने वाला है..
ये अब देख के यक़ीन हो गया..
अब मेरा अपना शहर आने वाला है!!

Wo Meri Har Baat

Wo meri har baat bs ye keh kar taal jaati hai,
Ki tum naya kuch nahi kehte ye baatein sbko aati hai

Mohabbat to wo bhi karna chahti mujhse,
Magar kambakht bich me mere khwaaboṅ ki doori aati hai

Wo mere ehsaas bus ye kehkar taal jaati h,
Wqt ane pr kuch nai rehta..
Ye mohabbat bhi ajeeb khel khilaati h!

Umaṛ apni wo bitana chahti hai mere sath,
Magar kami mujhe apni ji jindagi me najar aati hai

Kehne ko to aaj hi wo v kabool kar ke ishq mera,
Hume to aata h salika,use hi hunar-e-mohhbat nahi aati !!

Maine Maa ko nahi dekha hai

बहुत दिन हो गए हैं…मैंने अपनी माँ को नहीं देखा है!
रोज़ रात को उसकी दुआएँ हाल मेरा लेने आती तो मगर
उन दुआओ का असर देखा है दुआ के माँगने वाले को नी देखा है
बहुत दिन हो गये हैं मैंने अपनी माँ को नहीं देखा है!

बहुत सारे क़ीमती पकवान रोज़ खाए हैं मैंने
मगर उसकी सुखी रोटी सा स्वाद कही नी देखा है..
आँखें बंद करके उसकी परछाईं तो देखी है मैंने..
मगर हक़ीक़त में नूर ए जन्नत नहीं देखा है;
बहुत दिन हो गए हैं…

कभी बीमार होने पर फ़ोन से उसकी डाँट तो देखी है
मगर मेरी फ़िक्र में आँखो का आँसू नहीं देखा है
अभी कल ही तो दुनिया की नामी एक मिठाई खाई थी मैंने..
लेकिन उसमें भी पल्लू के बताशे सा स्वाद नहीं देखा है..
यूँ तो रोज़ सुबह भूख भी आँख छुपा लेती है हमसे
लेकिन घर से निकलते वक़्त नाश्ते का वो प्लेट नहीं देखा है…
हर रात बहुत महँगे गद्दे पर सोया थका हुआ दिनभर का
वहाँ नींद की झप्पी तो ली लेकिन सुकून को आस पास भटकता भी नहीं देखा है…
परियों की कहानी वाले इंसानों से रोज़ मुलाक़ात होती है मेरी
मैंने कहानी सुनाने वाली परी को मुदत्तों से नहीं देखा है
बहुत दिन हो गए हैं मैंने अपनी माँ को नहीं देखा है!!