कई ख्वाब मर गए हैं , पहुँच कर तेरे शहर में ,
कई रातें बस फ़िक्र में गुज़ारी हैं ,तेरे शहर में  !!

भटकते क़दमों को लेकर चला हूँ ,भूखे पेट के साथ
कई अरमान मर गए हैं , पहुँच कर तेरे शहर में  !!

ये बड़ी बड़ी इमारतें ,ये ऊँचे ऊँचे शौक यहाँ के
मतौल-ए-मौत भी मिलता है क्या तेरे शहर में  ??

काला सा धुंध आने कहाँ देता है सूरज को जमीन पर , 
मिट्टी भी धुल को तरसती है तेरे शहर में  !!

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